NEELAM GUPTA

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बचपन की अठखेलियां

🌷🌷नजरिया 🌷🌷
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शैतानीे बचपन,भोला बचपन, निराला बचपन ।
मेरा बचपन कनखियों से अब भी झांकता है । कहता है याद है वो बारिश में कागज की नाव ।
उसे दूर तक देखते थे ।जब तक ऑखों से ओझल ना हो जाए ।
मिट्टी के बर्तन ।अपने छोटे छोटे हाथों से बनाते थे ।संभालते थे सहजते थे ।फिर भी वो टूट जाते थे ।लेकिन बिना निराशा के अधिक ऊर्जा के साथ करते थे एक नई शुरुआत ।
गिल्ली डंडा हो या लगाना हो कंचो पर दांव ।
दीवारों पर डरते हुए चलते थे ।सम्भल कर रखते हुए पांव ।
सर्दियों में स्वेटर को आगे से मोड़ कर जेब बनाना ।उस में भर कर मूंगफलियां खाना ।
कभी तितली कभी पानी सर्फ के बुलबुले ।लॉलीपॉप के पाईप से उनको उड़ाना ।
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कागज़ के टुकड़े छत से फेंक कर ।इतराते थे देखकर उनका धीरे-धीरे घूम कर नीचे आना ।
ना धूप की चिन्ता ना सर्दी की कपन ।कितना ग़जब हमारा बचपन ।
घूमते थे चारों तरफ खुशबु बिखरे ।देखने ओस के सफेद फूल ।घर से निकल जाते थे ।सवेरे सवेरे ।
घर की छतों पर सीढ़ी की बस और खाटो (बान से बुनी हुई) से गुड़िया के लिए घर बनाना ।
बनाते थे छोटासा चूल्हा ।लाकर अपने अपने घर से समान ।मिलकर छोटी छोटी पूरियाॅ बनाना ।
कंकड़ के गिट्टे हो या हो स्टापू या आंखोँ पर पट्टी बांध कर एक दूसरे को ।करना हो पकड़ के काबू।
सौ की गिनती तक रस्सी से कूदते हुए भी कभी ना थकना।अपनी किताबों में फूल सम्भाल कर रखना ।
कभी कब्बडी कभी खो -खो कभी लंगड़ी टांग ।पूरे दिन झूमते रहते जैसे पी रखी हो भांग ।
जोर से लगाते थे ठट्ठा ।ना किसी से शर्माना ।खुलकर जीना ।ना किसी की शिकायत लगाना ।
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होले से छेड़ता है बचपन मुझको चिढ़ाता।कहाँ गयी वो मस्ती कहाँ गयी वो लहर ।जो सहेलियों से मिलने को घूमती थी डगर डगर ।
बिजली गुल हो जाने का अलग ही आनंद था।छतों पर सोते हुए दादीमाँ से सुनते कहानी ।
तारों भरा आसमां ,चन्द्रमा मामा से बातें ।कक्षा में अच्छे नम्बरों से पास हो जाए ।प्रार्थना करते थे दिन राती ।
स्कुल से अकेले आते हुए ।अपनेे जुनून मे बेचारे पत्थरों को पैर से घर तक ले आते थे ।
काश घर स्कूल के पास होता ।अपनी सोच पर ना अंकुश लगाते थे।
गाय माता के आगे ।हाथों में सिक्का लेकर ।उसका हाँ में सिर हिलाना ।खुशी से नाच उठता था दिल ये दिवाना।
टेलीविजन पर रातभर विडियों से फ़िल्में देखना ।मिलकर सब का हुडदंग मचाना।
कभी ताश का जोकर।कभी केरमबोर्ड की रानी।गर्मी की छुट्टियों में याद आ जाए नाना- नानी ।
बीत गया वो बचपन ।बीत गयी वो बातें ।
ना रहे वो दिन ना रही वो रातें ।
फिर से याद करके प्यारी सी मुस्कान ।आ जाती चहरे पर ।मानो आज भी हम मे। लग गये हो उत्साह के पर।
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